वर्मीकम्पोस्ट बनाने की सम्पूर्ण जानकारी-Vermicompost-केंचुआ खाद

वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) को हम केंचुआ खाद के नाम से भी जानते है आइये जानते है
वर्मीकम्पोस्ट बनाने की विधि, लाभ, कटाई, सफाई, तैयार करने की विधियां, वर्मीकम्पोस्ट की रासायनिक संरचना, वर्मीकम्पोस्ट उपयोग की मात्रा, सावधानियां आदि।

पिछले कई वर्षों में बढ़ती जनसंख्या के कारण मानव जीवन और कृषि आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था का जो संतुलन है वह काफी हद तक बिगड़ गया है। अपने जीवन यापन के लिए किसान परंपरागत खेती को छोड़ रसायनिक खेती करने लगे हैं रसायनों के कारण मिट्टी की उर्वरक क्षमता काफी कम हो गई है इसके कारण भूमि भी प्रदूषित हुई है और उर्वरकता पर भी काफी प्रभाव पड़ा है पहले हमें लगता था कि उत्पादन रसायनों के कारण बड़ रहा है लेकिन यह मिट्टी के जीवो के मरने के कारण बड़ा जिससे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ कुछ समय के लिए बढ़ रहे थे।

पृथ्वी की उत्पत्ति के साथ-साथ अनगिनत प्रकार के जीवों की भी उत्पत्ति हुई, इन्हें जीवो में केचुए भी हैं हज़ारो वर्षों से पृथ्वी पर पेड़ पौधों के लिए उचित मात्रा में पोषक तत्व उपलब्ध कराने में केचुओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है अभी तक पूरे विश्व भर में 4200 से केचुओं की प्रजाति पाई जा चुकी है सामान्य तोर पर केचुए भूमि की ऊपरी या निचली सतह में रहते हैं दोनों ही प्रकार से रहने के दौरान केचुओं द्वारा कचरे एवं मिट्टी को खाकर उनके द्वारा जो अपशिष्ट पदर्थ निकलता है, वह खाद के रूप में पेड़ पोधो को उपलब्ध होता है।

Vermicompost-hindi

पिछले कई वर्षों में रासायनिक खाद के उपयोग से होने वाले दुष्प्रभावों से चिंतित वैज्ञानिकों द्वारा इस छोटे जीव को अध्ययन के लिए चुना गया और उन्होंने पाया कि केंचुआ ही एक ऐसा जीव है जिसकी मदद से खाद बनाई जा सकती है कुछ विकसित देशों में घरेलू कचरे के निष्पादन के लिए भी केचुओं की कृत्रिम पालन की विधियां विकसित की गई हैं

हमारे देश में केचुओं का उपयोग खाद बनाने के लिए किए जाने का प्रचलन कुछ वर्षों से ही शुरु हुआ है इस कारण इस विधि पर बहुत अधिक शोध उपलब्ध नहीं है कुछ वर्ष पूर्व से ही केचुओं की विभिन्न प्रजातियों को पालकर व उनका अध्ययन कर इस प्रकार की खाद बनाने की ओर अधिक ध्यान दिया जा रहा है

वर्मीकम्पोस्ट के लाभ

  1. केंचुओं के पेट में जो जीवाणु होते हैं उनमें गोंदनुमा पदार्थ निकलता है जो कुछ धूल कणों को सख्त बनाता है। ये धूल कण भारी जमीन को नरम बनाते हैं, जिससे भूमि हवादार और पानी के निस्तार के लिए उपयोगी बनती है।
  2. केंचुओं की विष्ठा में पेरीट्रॉपिक झिल्ली होती है जो जमीन में धूल कणों से चिपक कर जमीन से वाष्पीकरण को रोकती है।
  3. केंचुए गंदगी फैलाने वाले हानिकारक जीवाणुओं (बेक्टीरिया) को खा जाते हैं और उसे लाभदायक ह्युमस में परिवर्तित कर देते हैं।
  4. केंचुए जमीन को दिन-रात पोली करते रहते हैं, जिससे भूमि की जल ग्रहण क्षमता में करीब 350 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
  5. केंचुओं युक्त जमीन में भूमि का क्षरण रुकता है।  
  6. केंचुओं के कारण गहरी जमीन के अनुत्पादित पदार्थ उत्पादित अवस्था में ऊपरी सतह पर आकर जड़ों को प्राप्त होते हैं।
  7. वर्मीकम्पोस्ट भूमि से रसायनिक उर्वरकों के विषैले प्रभाव को कम करता है।
  8. केंचुओं के शरीर का 85 प्रतिशत भाग पानी का बना होता है इसलिए सूखे को स्थिति में अपने शरीर के 60 प्रतिशत वजन के पानी का ह्रास भी हो जाये तो भी केंचुआ जिंदा रह सकता है। मरने के बाद भी उसके शरीर से जमीन को सीधे नत्रजन मिलती है।
  9. केंचुओं के कारण वातावरण स्वस्थ रहता है।
  10. खेती लाभकारी तथा निरंतर बनी रहती है।
  11. केचुओं के कारण खेती में रसायनों के उपयोग में भारी कमी और अंतत: बेशकीमती ऊर्जा में बचत होती है।
  12. वर्मीकम्पोस्ट भूमि के कार्बनिक पदार्थों की मात्रा को बढ़ाता है।
  13. वर्मीकम्पोस्ट के प्रयोग से लाभदायक जीवाणु की संख्या बढ़ती है।
  14. फसलों के दानों में चमक एवं सुगंध बढ़ाता है।
  15. मृदा की संरचना में सुधार करता है।
  16. वर्मीकम्पोस्ट के प्रयोग से भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है।
  17. फसलों की पैदावार बढ़ाता है।

केचुओं का आहार

केंचुए द्वारा आहार सूखी पत्तियां सूखा गोबर ग्रहण किया जाता है और मल मूत्र के रूप में कम्पोस्ट प्राप्त होता है। जिसे वर्मीकम्पोस्ट कहते हैं। या दूसरे शब्दों में कहें तो केंचुए के द्वारा त्यागा अपशिष्ट पदार्थ जैसे मल मूत्र वर्मीकम्पोस्ट कहलाता है। विश्व में ऐसिनिया कटिंडा सबसे अधिक वर्मा कम्पोस्ट बनाने में उपयोग में लाई जाती है।

उपयुक्त समय – वर्मीकम्पोस्ट किसी भी समय तैयार किया जा सकता है इसे साल भर तैयार किया जा सकता है।

जलवायु – वर्मीकम्पोस्ट तैयार करने के लिए सामान्य तापक्रम-10 से 40 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त होता है। वर्षा का वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि इसे शेड में तैयार किया जाता है।

भोज्य पदार्थ – वर्मीकम्पोस्ट तैयार करने के लिए वर्मी को भोज्य पदार्थ की आवश्यकता होती है जिसे वर्मीकम्पोस्ट का कच्चा माल कहा जाता है। केंचुए दिये गये निम्न आहार का प्रयोग करते हैं।

  1. सूखा गोबर
  2. गीला गोबर
  3. सूखी पत्तियां
  4. फसल के अवशेष
  5. रसोई से निकलने वाला कचरा जैसे सब्जियों के टुकड़े, अनाज इत्यादि।
  6. बगीचे से निकलने वाला कचरा जैसे फूल, पत्तियाँ इत्यादि।

वर्मीकम्पोस्ट बनाने की विधि

स्थान का चुनाव – वर्मीकम्पोस्ट के उत्पादन के लिए उचित स्थान का चुनाव आवश्यक होता है ताकि वर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन सफलता पूर्वक बिना किसी असुविधा के किया जा सके। स्थान के चुनाव के लिए निम्न बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाना चाहि।

वर्मीकम्पोस्ट की कटाई(निकालना)

वर्मीकम्पोस्ट के तैयार होने के बाद इसकी कटाई की जाती है जो निम्न प्रकार से है।
(1) कटाई – सर्वप्रथम तैयार कम्पोस्ट का ढेर बना लिया जाता है।
(2) कटाई – कम्पोस्ट के ढेर से केंचुए अलग-अलग कर लिये जाते हैं क्योंकि केंचुए का प्रयोग दूसरी बार कम्पोस्ट बनाने के लिए किया जाता है।
(3) कटाई – इस चरण में बिना सड़ा हुआ पदार्थ अलग कर लिया जाता है।

वर्मीकम्पोस्ट की सुखाई

तैयार कम्पोस्ट के ढेर को हल्की धूप में सुखा लिया जाता है जिससे कि कम्पोस्ट की नमी कम हो जावे। किन्तु पूर्ण रूप से नमी को समाणत नहीं किया जाना चाहिये।

वर्मीकम्पोस्ट की सफाई व छनाईं

कम्पोस्ट को सुखाने के पश्चात्‌ इसमें से बिना सड़ा हुआ पदार्थ अलग किया के जाता है तथा विजातीय पदार्थ जैसे लकड़ी के टुकड़े, कांच, पत्थर इत्यादि को अलग कर दिया जाता है। इसके बाद कम्पोस्ट को मोटी जाली की छनन्‍नी से छाना जाता है आजकल वर्मीकम्पोस्ट को छानने के लिए आधुनिक मशीन का प्रयोग किया जाने लगा है।

  • कम्पोस्ट के उत्पादन के लिए स्थान ऊंचे होने चाहिए ताकि बरसात के दिनों में पानी न भरने पाये।
  • स्थान शुष्क होना चाहिए क्योंकि स्थान यदि नम हो तो केंचुए कम्पोस्ट तैयार करने वाले मुख्य स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं जिससे शेड में केंचुओं की संख्या कम हो जाती है।
  • कम्पोस्ट तैयार करने के स्थान पर पानी होना चाहिए।
  • शेड के चारों और सुरक्षा हेतु फेन्सिंग होना चाहिए ताकि पशुओं पक्षियों के द्वारा किसी प्रकार का नुकसान से बचा जा सके।
  • कम्पोस्ट तैयार करने वाला स्थान दीमक व चींटियों से मुक्त होना चाहिए क्‍योंकि दीमक कम्पोस्ट की गुणवत्ता 6. वर्मीकम्पोस्ट तैयार करने वाला स्थान पूरी तरह छायादार होना चाहिए, यदि स्थान छायादार नहीं है तो कृत्रिम शेड द्वारा स्थान को छायादार करने की आवश्यकता होगी।

गड्ढे का निर्माण करना

वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन हेतु गड्ढे का निर्माण किया जाता है जिस पर कम्पोस्ट के लिए बिछाली या बेड तैयार की जाती है। कम्पोस्ट के लिए गड्ढे का निर्माण निम्न प्रकार से किया जाता है।

1. गड्ढा तैयार करना – शेड के नीचे गड्ढा तैयार किया जाता है जिसका आकार लंबाई 18 फीट, गहराई 2 फीट एवं चौड़ाई 5 फीट, होना चाहिए।  तैयार गड्ढे में बजरी का पानी चलाकर धुमस किया जाता है जिससे कि कम्पोस्ट के गड्ढे का आधार या बेस मजबूत हो जाये। टांका जमीन सतह से पक्का सीमेंट से 8 इंच मोटी दीवार से बनायें।

2. लाईनर (ईटों की लाईन) – तैयार किये गड्ढे के चारों ओर ईंटों के द्वारा लाईन बनाई जाती है जिसे लाईनर कहते हैं।

शेड का निर्माण– वर्मीकम्पोस्ट के निर्माण के लिए छाया का होना आवश्यक होता है स्थान को छायादार बनाने के लिए दो प्रकार के शेड हो सकते हैं।

प्राकृतिक शेड – इस प्रकार के शेड बनाये नहीं जाते बल्कि किसी छायादार वृक्ष के नीचे वर्मीकम्पोस्ट तैयार करने का गड्ढा तैयार किया जाता है।

कृत्रिम शेड– कृत्रिम रूप से शेड का निर्माण छाया के लिए किया जाता है इसके लिए निम्न वस्तुओं की आवश्यकता होती है।

आवश्यक सामग्री –

  1. बल्लियां
  2. खपरैल, टीन या घास-फूस इत्यादि।

इनकी सहायता से शेड का निर्माण किया जाता है जिन स्थान पर लकड़ी, घास-फूस आसानी से उपलब्ध हो जाती है वहां ढांचा तैयार करने के लिए लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है। छत पर टीन के शेड के स्थान पर घास-फूस का प्रयोग किया जाता है लकड़ी व घास-फूस से तैयार किये गये शेड अपेक्षाकृत सस्ते होते हैं।

वर्मीकम्पोस्ट तैयार करने की विधि

वर्मीकम्पोस्ट मुख्य रूप से दो विधियों द्वारा तैयार किया जाता है।

1. पाट विधि (पात्र विधि) – घरेलू स्तर पर कम मात्रा में पात्र विधि द्वारा वर्मीकम्पोस्ट तैयार किया जाता है। इस विधि में 10 से 20 कि ग्रा. कम्पोस्ट का उत्पादन प्रतिमाह किया जा सकता है। इस विधि में कच्चे माल के रूप में रसोई से निकलने वाला कचरा जैसे सब्जियों के टुकड़े, अनाज और बागवानी से निकलने वाला कचरा जैसे पौधों की पत्तियां फूल इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है।

बनाने की विधि – पात्र विधि में एक ‘वी’ आकार का पात्र लिया जाता है यह पात्र लकड़ी की पेटी, प्लास्टिक की बाल्ल्टी या सीमेंट की टंकी हो सकती है। इस पात्र के निचले हिस्से में एक छेद होता है जिससे दिया गया अधिक पानी बाहर निकल जाता है। इस पात्र के निचले हिस्से में बजरी और कचरे की एक परत बिछा दी जाती है इस बजरी पर घर से निकलने वाला कचरे की परतें डाली जाती है जब कचरे से पात्र पूरी तरह भर जाता है तो इसकी ऊपरी सतह पर केंचुए डाल दिये जाते हैं एवं प्रतिदिन पानी सींचा जाता है। इस तरह एक पात्र में कम्पोस्ट बनकर तैयार हो जाती है।

2. सरफेश विधि (सतही विधि)– इसे शेड एवं बेड विधि के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस विधि में कम्पोस्ट तैयार करने के लिए शेड का प्रयोग किया जाता है। इस विधि के द्वारा 30 से 45 दिनों में कम्पोस्ट तैयार होती है।

बनाने की विधि– सरफेश विधि एक व्यवसायिक विधि है जिसमें अधिक मात्रा में कम्पोस्ट तैयार किया जाता है। इस विधि के द्वारा कम्पोस्ट तैयार करने को निम्न चरणों में बांटा जा सकता है।

  • प्रथम चरण – इस चरण में तैयार किये गये गड्ढे के ऊपर सूखी घास या नारियल के छिलकों का प्रयोग किया जाता है गड्ढों में चारों ओर सूखी घास या नारियल के छिलकों को बिछाली के रूप में बिछा दिया जाता है।
  • द्वितीय चरण– इस चरण में एक सप्ताह का सूखा गोबर और सूखी पत्तियों को साथ मिलाकर बेड बना दी जाती है।
  • तृतीय चरण– तैयार बेड के ऊपर ताजा गोबर डाला जाता है और इस पर केंचुए छोड़ दिये जाते हैं।
  • चतुर्थ चरण – इस चरण में तैयार की गई बेड पर बोरों की फट्टियों को बिछा दिया जाता है और पानी चला दिया जाता है।

इस बेड पर प्रतिदिन सिंचाई की जाती है। कम्पोस्ट तैयार होने पर 6-7 दिन पहले से सिंचाई बंद कर दी जाती है। 30 से 45 दिनों में वर्मीकम्पोस्ट बन कर तैयार हो जाती है।
इस तरह की विधियों से प्रति टांका 20 क्विंटल अच्छी गुणवत्ता की (चाय पत्ती जैसे बारीक) वर्मीकम्पोस्ट खाद एवं 20 से 25 किलो केंचुओं की प्राप्ति होती है।

देखरेख व प्रबंधन

वर्मीकम्पोस्ट की बेड तैयार करने के पूर्व व बाद में वर्मीकम्पोस्ट बनाने तक बेड की देखरेख व प्रबंध किया जाना आवश्यक है जिसके लिए दिये गये महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिये जो कि निम्न है।

आद्रता – कम्पोस्ट तैयार करने के लिए आर्द्रता आवश्यकता होती है क्योंकि केंचुए नम स्थान पर ही रहते हैं। केंचुए को अपने जीवन संबंधी क्रियाओं के संचालन हेतु पानी को आवश्यकता अधिक होती है इसलिए प्रतिदिन तैयार शेड पर सिंचाई करना आवश्यक होता है।

तापक्रम – केंचुओं के लिए 10-40 डिग्री सेल्सियस तापक्रम उपयुक्त होता है। तापक्रम यदि अधिक होने लगता है तो तापक्रम के नियंत्रण हेतु शेड के चारों ओर बोरों को काट कर लटका दिया जाता है व इन बोरों को पानी से गीला कर दिया जाता है।

वातन(वायु संचारण) – केंचुए के विकास व वृद्धि के लिए वातन आवश्यक है वातन अच्छी तरह से हो इसके लिए बेड़ तैयार करते समय सर्वप्रथम सूखी घास एवं नारियल के छिलकों का प्रयोग किया जाता है और शेड को चारों ओर से खुला रखा जाता है।

कीट नियंत्रण – कम्पोस्ट तैयार करने वाले स्थान को चीटियों व दीमक से मुक्त रखने के लिए गड्ढे को 1 माह पूर्व कौटनाशकों से उपचारित किया जाता है।

छाया करना – कम्पोस्ट तैयार करते समय छाया की पूर्ण व्यवस्था की जाती है।

सुरक्षा – पशु व पक्षियों से सुरक्षा हेतु शेड के चारो ओर तारो की फेन्सिंग या बाड़ लगाना आवशयक होता है। 

सावधानियां

  1. क्यारियां बनाने के लिए छायादार स्थान का चयन करें।
  2. क्यारियां पानी के ख़ोत के पास हो, अन्यथा पानी के छिड़काव में परेशानी होगी।
  3. क्यारियों को सीधी धूप या तेज प्रकाश से बचायें।
  4. मौसम के अनुसार पानी का छिड़काव करें।
  5. गोबर व कृषि अपशिष्ट की मात्रा के अनुसार केंचुये डालें अन्यथा खाद का निर्माण की प्रक्रिया धीमी रहेगी । 3*3*1 मीटर आकार की क्यारी के लिए 2 K.g  वर्मी कल्चर प्रयोग करें।
  6. खाद बनते समय गोबर व अपशिष्ट को उथल-पुथल नहीं करें, क्योंकि इससे केंचुए नष्ट होते हैं।
  7. खाद निर्माण प्रक्रिया पूर्ण होने से पहले ही पुनः भरने के लिए कृषि अपशिष्ट व गोबर को मिलाकर ठंडा कर लेवें।

इस प्रकार खाद तैयार होने पर इसे व्यवसायीकरण हेतु प्रयुक्त किया जा सकता है। वर्मीकम्पोस्ट में अन्य कार्बनिक खादों के मुकाबले अधिक मात्रा में पोषक तत्व होते हैं जिससे भूमि की उत्पादकता में वृद्धि होती है एवं उत्तम फसल प्राप्त होती है।

वर्मीकम्पोस्ट उपयोग की मात्रा

वर्मी का उपयोग विभिन्‍न फसलों में अलग- अलग मात्रा में किया जाता

  • खाद्यान्न फसल – 5 से 6 टन प्रति हेक्टर
  • फलदार पेड़ –  4 से 0 किलो प्रति पेड़
  • गमले – 100 ग्राम प्रति गमला
  • सब्जियां – 10 से 12 टन प्रति हेक्टर
  • वर्मीकम्पोस्ट में पोषक तत्वों की मात्रा

वर्मीकम्पोस्ट में औसत नाईट्रोजन की मात्रा गोबर की सड़ी खाद के समान ही होती है परन्तु कार्बन, कैल्शियम एवं फास्फोरस की मात्रा गोबर की खाद की तुलना में अधिक होती है | दूसरी तरफ पोटेशियम एवं सूक्ष्म पोषक तत्व वर्मीकम्पोस्ट में गोबर की खाद की तुलना में कम मात्रा में पाये जाते हैं ।

वर्मीकम्पोस्ट की रासायनिक संरचना

 मानकवर्मीकम्पोस्टगोबर की खाद
1P.h7.27.2
2विद्युत चालकता (डीएसएम)0.0820.18
3सेन्द्रीय द्रव्य (प्रतिशत)20.92.2
4मुफ्त केल्शियम कार्बोनेट (प्रतिशत)7.8
5कार्बन नत्रजन अनुपात34.724.4
 मुख्य पोषक तत्व  
6कुल नत्रजन (प्रतिशत)0.560.5
7उपलब्ध नत्रजन (पी.पी.एम.)387375
8कुल फास्फोरस (प्रतिशत)4.480.75
9कुल पोटाश (पी.पी.एम.)0.362.3
10उपलब्ध पोटाश (पी.पी.एम.)406026030
 सूक्ष्म पोषक तत्व  
11आयरन (पी.पी.एम.)24.624.7
12जिंक (पी.पी.एम.)12.740
13मैग्निज (पी.पी.एम.)19.212
14कॉपर (पी.पी.एम.)5.82.8
* अनुमानित आंकड़े


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2 Comments

  1. सौरवsays:

    केचुआ खाद बनाने के लिए केचुआ कहाँ से खरीदे?

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