वर्मीवाश (Vermiwash) एक तरल जैविक (ऑर्गेनिक) खाद है जो केंचुये द्वारा छोड़े गये अवशिष्ट पदार्थो से प्राप्त होतो है। यह तरल स्प्रे के रूप में अत्यंत ही उपजाऊ एवं पौधो की वृद्धि व् बड़वार में अत्यंत सहायक होता है, इसे हम पौधो का एक जैविक (ऑर्गेनिक) टॉनिक भी कह सकते है,
वर्मीवाश बनाने की विधि
टंकी निर्माण
- वर्मीवाश उत्पादन हेतु 8 X 8 फीट का पक्की (ईंट एवं सीमेंट की मदद से) डेढ़ (फीट ऊंची टंकी बनायी जाती है।
- इसके एक फीट नीचे लगा हुआ छोटा टांका आकार-1 X 1 फीट का उसी तरह बनाया जाता है।
- बड़ी टंकी को बनाते समय इस बात का विशेष ख्याल रखें कि ढलान छोटी टंकी की तरफ हो ताकि बड़ी टंकी में एकत्र सामग्री आसानी से बहकर छोटी टंकी में चली जाये।
- बड़ी टंकी में जहां पर नीचे छोटी टंकी हो वहां पाईप के माध्यम से एक नल की टोंटी भी लगायें ताकि बड़ी टंकी का अवशिष्ट छोटी टंकी में रिसता रहे ।
वर्मीवाश बनाने की आवश्यक सामग्री
- बड़ी टंकी में 80-00 Kg. केंचुए डालें।
- इनके भोजन हेतु 250 Kg. सड़ी गोबर खाद डालें ताकि केंचुये पर्याप्त रूप से भोजन ग्रहण कर सकें ।
- ऊपर से जूट की टाट-पट्टी से ढंक दें।
- इसके पश्चात् प्रतिदिन कम से कम 4-5 लीटर पानी झारे के माध्यम से पट्टियों के ऊपर डालें।
- इन केंचुओं को एक सप्ताह पश्चात निकालकर इसमें गोबर खाद बदल दें।
- केंचुओं को अलग निकाल लेना चाहिए क्योकि इन्हीं दुबारा उपयोग में लाया जा सकता है।
- एक बात का विशेष ख्याल रखें कि टंकी में प्रयुक्त सड़ी गोबर खाद अवश्य बदलें क्योंकि केंचुओं के दुबारा भोजन के लिए नयी सड़ी गोबर खाद का होना आवश्यक है। इस क्रिया से
- प्रतिदिन 4-5 लीटर वर्मीवाश छोटी टंकी में एकत्र होता रहेगा। इस तरल-वर्मीवाश (Vermiwash) को किसी पात्र में इकट्ठा करते जायें।
वर्मीवाश का उपयोग
वर्मीवाश का उपयोग पौध टॉनिक के रूप में किया जाता है। इस वर्मीवाश का उपयोग कीटनाशक के रूप में भी किया जा सकता है। प्रयोगों के आधार पर इसके के उपयोग से फसलों में वृद्धि एवं दानों की गुणवत्ता भी सुधरती है।
इसका उपयोग 15 लीटर पानी में 200-400 मिली. प्रति एकड़ (फसल अनुसार) करना उचित मन गया है।
वर्मीकम्पोस्ट और वर्मीवाश दोनो के उचित प्रयोग से सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले फूल व फल प्राप्त किये जा सकते है।
बाजार में उपलब्ध पौध टॉनिक से तुलना करने पर वर्मीवाश के उपयोग से 400-500/- रुपये प्रति लीटर इससे बचाया जा सकता है और फसल की गुणवत्ता भी सुधरेगी।
वर्मीबाश का संगठन, सक्रिय पदार्थ
वर्मीवाश में सभी पोषक तत्व सूक्ष्म मात्रा में पाये जाते हैं और एंजाइम्स जैसे जिबरेलीक एसीड, ऑक्सीजन, सायटोकिन्स और एन्जाइम जैसे लीपेज इत्यादि पाये जाते हैं।
मानक | मात्रा | |
1 | पि. एच. | 7.480 ± 0.03 |
2 | इलेक्ट्रो कंडक्टिविटी (डेसी साइनम/मिटर) | 0.25 ± 0.03 |
3 | ऑर्गेनिक कार्बन (%) | 0.008 ± 0.001 |
4 | कुल जेलडाल नाइट्रोजन (%) | 0.01 ± 0.005 |
5 | उपस्तिथ फास्फेट (%) | 1.69 ± 0.05 |
6 | पोटेशियम (पी पी एम) | 25 ± 2 |
7 | कैल्श्यिम (पी पी एम) | 3 ± 1 |
8 | कॉपर (पी पी एम) | 0.01 ± 0.001 |
9 | फेरस (पी पी एम) | 0.06 ± 0.001 |
10 | मैग्निशियम (पी पी एम) | 158.44 ± 0.03 |
11 | मैग्नीज़ (पी पी एम) | 0.58 ± 0.040 |
12 | ज़िंक (पी पी एम) | 0.02 ± 0.001 |
13 | हेटेरोट्रैप्स (सी एफ़ यु /मिली.) | 1.79 ± 103 |
14 | नाइट्रोसोमोनास (सी एफ़ यु /मिली.) | 1.01 ± 103 |
15 | कुल फंजाई (सी एफ़ यु /मिली.) | 1.46 ± 103 |
* अनुमानित आंकड़े |
वर्मीवाश उपयोग की अवस्थाएं – इसका का उपयोग सामान्यतः फसलों की प्रारंभिक अवस्था और पुष्पन के समय किया जाता है।
तैयार वर्मीवाश को पौधों पर पर्णीय छिड़काव किया जाता है।
इसकी उपयोगिता बढ़ाने के लिए इसमें गौमूत्र मिलाकर इसमें दस गुना पानी मिलाया जा सकता है।
वर्मीवाश के लाभ – यह का पर्णीय छिड़काव करने से पौधों में वृद्धि एवं विकास शीघ्रता से होता है।
- फूलों की संख्या बढ़ जाती है।
- दानों एवं फलों का आकार बड़ा हो जाता है।
- दानों एवं फलों का आकार बढ़ जाता है।
- दाने में चमक बढ़ जाती है, जिससे बाजार भाव अच्छे प्राप्त होते हैं।
- कल्ले एवं जड़ें बढ़ जाती है।
विशेष – वर्मीवाश का उपयोग किसी भी प्रकार के रसायनों के साथ नहीं करना चाहिए।
प्रशिक्षण संस्थान
केंचुओ (Vermi) से सम्बंधित किसी अन्य जानकारी या प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा कई कारिक्रम चलिए जा रहे है
जैसे:-
1. Indian Veterinary Research Institute
2. National and Regional Organic Farming Centers
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