सहकारी समितियों को सहकारी संस्था, सार्वजनिक निगम एवं सहकारी उपक्रम आदि के नामों से जाना जाता है सहकारी समिति ऐसे लोगों का संघ होता है जो अपने पारस्परिक लाभ के लिए स्वेच्छा पूर्ण सहयोग करते हैं।
औद्योगिक क्रांति के कारण उत्पन्न आर्थिक व सामाजिक तंगी के परिणाम स्वरुप भारत में वर्ष 1960 में एडवर्ड लॉ की अध्यक्षता में सहकारी समिति के संगठनों की व्यवस्था एक प्रस्ताव के आधार पर की गई प्रस्ताव के आधार पर 1904 में सहकारी साख अधिनियम पास किया गया, कई पूंजीवादी देशों जैसे संयुक्त राष्ट्र अमेरिका तथा जापान आदि देशों में सहकारी समितियों ने देश में उन्नति लाई है।
सहकारी समिति की परिभाषा
सहकारी शब्द का शाब्दिक अर्थ है साथ मिलकर कार्य करना अर्थात ऐसे व्यक्ति जो समान रूप से आर्थिक उद्देश्य के लिए साथ मिलकर काम करते हैं वह सहकारी समिति बना सकते हैं इसे ही सहकारी समिति कहते हैं।
सहकारी समिति की कार्यप्रणाली व उद्देश्य
यह ऐसे व्यक्तियों की स्वयं सेवा संस्था है जो अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए कार्य करते हैं यह समिति स्वयं व परस्पर सहायता के सिद्धांत पर कार्य करती है इस समिति में कोई भी व्यक्ति व्यक्तिगत लाभ के उद्देश्य से कार्य नहीं करता है।
सहकारी समिति एक प्रकार का ऐसा संगठन है जिसमें व्यक्ति अपनी इच्छा से समानता के आधार पर आर्थिक हित के लिए अपने-अपने संसाधनों को एकत्र कर व उनका अधिकतम उपयोग कर लाभ प्राप्त करते हैं और उसे आपस में बांट लेते हैं।
जैसे किसी क्षेत्र के विद्यार्थी विभिन्न कक्षाओं की पुस्तकें गरीब व निर्धन विद्यार्थियों को पुस्तके उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एकत्र होकर एक समिति बनाते हैं, अब विद्यार्थी सीधे प्रकाशकों से संबंधित कक्षा व विषय की पुस्तकें क्रय करके गरीब व निर्धन विद्यार्थियों को बहुत ही सस्ते दामों पर बेचते हैं क्योंकि वह सीधे प्रकाशकों से पुस्तकें क्रय करते हैं तो इस प्रकार मध्यस्थों के लाभ की समाप्ति हो जाती है।
सहकारी समितियों की विशेषताएं
- स्वैच्छिक संस्था : यह एक स्वैच्छिक संस्था है इसमें कोई भी व्यक्ति कभी भी सदस्य बन सकता है और स्वेच्छा से सदस्यता छोड़ भी सकता है
- खुली सदस्यता : सहकारी समिति की सदस्यता समान हितों व उद्देश्य वाले सभी व्यक्तियों के लिए खुली होती है इसके अलावा सदस्यता लिंग, वर्ण, जाति व धर्म के आधार पर प्रतिबंधित नहीं होती है
- एक वैधानिक इकाई : एक सहकारी उपक्रम को सहकारी समिति अधिनियम 1912 अथवा राज्य सरकार के सहकारी समिति के अधिनियम के अंतर्गत पंजीकरण करवाना अनिवार्य है एक सहकारी संस्था का अपने सदस्यों से पृथक व अलग वैधानिक अस्तित्व होता है
- वित्तीय प्रबंध : सहकारी समिति में पूंजी सभी सदस्यों द्वारा लगाई जाती है और यदि संस्था पंजीकृत हो जाती है तो वह ऋण भी ले सकती है साथ ही सरकार से अनुदान भी प्राप्त किया जा सकता है
- मताधिकार : सहकारी समिति का मुख्य उद्देश्य सेवा करना होता है यद्यपि यह उचित लाभ भी प्राप्त कर सकती है और एक सदस्य के पास केवल एक मत देने का अधिकार होता है चाहे उसके पास कितने ही अंशु हो
सहकारी समितियों के प्रकार (Types of Co-operative Societies)
उपभोक्ता सहकारी समितियां (Consumer Co-operative Society)
यह समितियों उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के उद्देश्य से बनाई गई है यह सीधे उत्पादकों व निर्माताओं से माल खरीद कर वितरण प्रक्रिया से मध्यस्थों की समाप्ती कर देती है इस प्रकार सीधे वस्तुएं उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक कम मूल्य में पहुंच जाती है। जैसे की केंद्रीय भंडार व राज्य भंडार आदि।
उत्पादक सहकारी समितियां (Producer Co-operative Society)
यह समितियां लघु व छोटे उद्योगों के उत्पादकों के लिए कच्चा माल, मशीनरिस, उपकरण आदि की आपूर्ति करके उनकी मदद करती है। जैसे बायोनिका, हरियाणा हैंडलूम आदि।
सहकारी विपणन समितियां (Marketing Co-operative Society)
यह समितियां छोटे उत्पादक व निर्माताओं से मिलकर बनती है जो स्वयं अपने उत्पाद को बेच नहीं सकते सहकारी समिति इन सभी सदस्यों से माल एकत्र कर उसे बाजार में बेचने का उत्तरदायित्व लेती है। जैसे अमूल दूध, सांची दूध इत्यादि।
सहकारी वित्तीय समितियां (Cooperative Financial Committees)
इस प्रकार की सहकारी समिति सदस्यों दर्शकों सहायकों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती है समिति सदस्यों से व पंजीकृत होने की दशा में राज्य सरकार से पूंजी एकत्रित कर जरूरत के समय उचित ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाती है। जैसे ग्राम सेवा सहकारी समिति व सहकारी समिति आदि।
शाकाहारी सामूहिक आवास समितियां (Housing Cooperative Society)
यह आवास समितियां अपने सदस्यों को आवासीय मकान उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बनाई जाती हैं यह समितियां भूमि क्रय कर के मकान व प्लाट की व्यवस्ता करती है और उनका आवंटन अपने सदस्यों को करती है।
सहकारी समिति के लाभ (Benefits of Co-operative Society)
- स्वैच्छिक संगठन : यह एक स्वैच्छिक संगठन है इसमें कोई भी सदस्य अपनी स्वेच्छा से आ जा सकता है वह किसी भी समय सदस्यता छोड़ भी सकता है यह पूंजीवादी तथा समाजवादी दोनों प्रकार के आर्थिक क्षेत्रों में पाया जाता है
- मध्यस्थों के लाभ की समाप्ति : सहकारी समिति के सदस्य उपभोक्ता अपने माल की आपूर्ति पर स्वयं नियंत्रण रखते हैं माल सदस्यों द्वारा सीधे उत्पादकों से क्रय किया जाता है इस प्रकार मध्यस्थों की समाप्ति हो जाता है
- समिति देनदारी : सहकारी समिति में देनदारी उनके द्वारा लगाई गई पूंजी तक ही सीमित होती है एकल स्वामित्व व साझेदारी फर्म के विपरीत सहकारी समितियों के सदस्यों की व्यक्तिगत संपत्ति पर व्यवसायिक देनदारियों का जोखिम नहीं होती है
- स्थाई अस्तित्व : सहकारी समिति का कार्यालय स्थिर होता है किसी सदस्य की मृत्यु, दिवालिया, पागल या सदस्यता से त्यागपत्र देने की दशा में भी समिति के अस्तित्व पर कोई अंतर नहीं पड़ता है
- लोकतांत्रिक संचालन : सहकारी समिति का संचालन लोकतांत्रिक तरीके से होता है इसका प्रबंध लोकतांत्रिक होता है एक व्यक्ति का एकमत वाली विचारधारा पर आधारित होता है
सहकारी समिति की सीमाएं
- अभिप्रेरणा की कमी : सर सहकारी समिति का उद्देश्य लाभ कमाना ना हो पर सेवा कार्य होता है इसके कारण सदस्य अति उत्साह व संपूर्ण भाव से कार्य नहीं कर पाते
- सिमित पूंजी : सहकारी समिति के सदस्यों के संगठन में समाज के एक विशेष वर्ग के व्यक्ति ही होते हैं इसलिए उनके द्वारा लगाई गई पूंजी भी सीमित होती है
- प्रबंध संबंधित समस्याएं : सहकारी समितियों अपने कर्मचारियों को कम वेतन देती हैं क्योंकि उनके पास पूंजी की सीमित मात्रा होती है जिसके कारण संगठन को प्रबंध संबंधित समस्याएं आती हैं
- आपसी सामंजस की कमी : सहकारी समितियां आपसी सामंजस की भावना से बनाई जाती है लेकिन समय के साथ परिस्थितियां बदलती हैं परिणाम संगठन में सदस्यों के बीच मध्य मतभेद, अहंकार, लड़ाई-झगड़ा, तनाव बना रहता है सदस्यों के इस रवैया के चलते भी संगठन बंद हो जाते हैं
- सहकारी समिति : सहकारी संगठन में किसी भी सदस्य को किसी भी कार्य के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता सहकारी समिति की सफलता उसके सदस्यों की निष्ठा व कार्यशैली पर निर्भर करती है
राजस्थान प्रदेश के 15000 PACS LAMPS सहकारी समितियों के कर्मचारियों को उड़ीसा मधयप्रदेश उतराखंड राज्य की तर्ज पर सुरक्षित सेवा के लिए कॉमन कैडर गठन, नियमितीकरण , उचित वेतनमान की मांग व्यावहारिक और उनकी सेवाओं के बदले उचित प्रतिफल की नीति के तहत उनकी मांग वाजिब है,प्रदेश के करोड़ों लोगों को ब्याज मुक्त फसल ऋण, खाद बीज कीटनाशक बिक्री, राशन वितरण, समर्थन मूल्य खरीद सहित केंद्र व राज्य सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन करने वाले खुद अभाव और तंगहाली में,यह एक सामाजिक वेदना।
चूंकि राजस्थान में 30 बरसों से सहकारी समितियों के कर्मचारियों की सुरक्षित सेवा को लेकर अनदेखी की गई है जिससे प्रदेश के किसान आमजन को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है
साथ ही कोरोना में सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन करते समय 50 से ज्यादा पैक्स कर्मचारियों की मौत हुई लेकिन सरकार द्वारा कोई आर्थिक सामाजिक सुरक्षा नहीं दी गई इसके अलावा अब तक 6 पैक्स कर्मचारियों ने समय पर वेतन नहीं मिलने से आर्थिक तंगी से आत्महत्या कर अपना जीवन खत्म कर चूके है
केंद्र सरकार सहकारिता के लिए बहुत ही शानदार कार्य कर रही है लेकिन सहकारी समितियों के कर्मचारियों को सामाजिक आर्थिक सुविधाएं देनी चाहिए उम्मीद है कि केन्द्र सरकार इस मुद्दे को जल्द संज्ञान में लेकर समाधान करेंगे